जितेंद्र कुमार दूबे की कलम से विशेष रचना : पट्टीदारी....
जितेंद्र कुमार दूबे की कलम से विशेष रचना : पट्टीदारी....
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अगली-बगली घर-दुआर अउर..!
बनल होय दलान-ओसारी...पर...
मन में दूरी कोस भरे कै होय,
बस इहै कहि जात है...पट्टीदारी...
अईन बख़त पै खानपान के,
पाबंदी कै फरमान होय जब जारी
समझ लो भैया पक्की है पट्टीदारी
बात-बात पर भिड़-भिड़ जाए,
युद्ध के होय सदा तैयारी...
बरबादी का हर नुस्खा गढ़ती,
गाँव-देश में यह पट्टीदारी....
बन जाओ तुम यस.पी,डी.एम.
चाहे बन जाओ दण्ड-अधिकारी,
गाँव देश में तुम पर भारी रहेगी,
सदा तुम्हारी पट्टीदारी...
खूब खरीदो जगह-जमीन...तुम...
बना लो संपत कितनो सारी..पर,
गाँव-देश में कभी न होगी,
किलियर खेती-मेड़ तुम्हारी...
कारण इसका बस एक है मित्रों
गाँव-देश की...तुम्हरी पट्टीदारी...
खूब करो तुम मेलजोल..या फिर..
कर लो मन भर खातिरदारी..पर..
गाँव-देश में ऐंठी रहेगी ये पट्टीदारी
हर बीमारी एक तरफ है,
एक तरफ है पट्टीदारी...
कबहुँ न ई सब रहम दिखावे,
घाव करे हरदम भारी...
कदम-कदम पर रगरा ढूँढ़ें,
एक दूजे को देवैं...हरदम गारी,
ऐसी ही होवे पट्टीदारी....
गाँव भरे मा दुइनव घूमे-टहरै,
बनके भले बिलारी...पर...
झूठी शान अउ अकड़ के खातिर,
दुइनौ मन से निबहैं पट्टीदारी...
जिसकी मति है मारी गई,
उसने करी इनकी चाटुकारी...
मिलना-जुलना कछु भी नहीँ है,
सब पर आँख तरेरे पट्टीदारी...
पट्टीदारी गज़ब का पागलपन है,
औ..है...ग़ज़बै दुनियादारी...
व्यथा अनोखी अउर ह न्यारी,
गाँव देश की यह पट्टीदारी...
रिश्तेदारी भले न निबहै...!
खूब..मनोयोग से निभती पट्टीदारी
कैसे कहूँ मैं भईया....?
एक दूजे के नाश करे है,
गाँव-देश में ई पट्टीदारी...
भइया,बात सही एक कहैं जितेंदर
गाँव-देश में हौ उहै सिकंदर
जेकरे घरे के सुख-दुख में,
होय सबकै भागीदारी...
कोई न ऐसा मिले गाँव-देश मा
जो मन से निभाए पट्टीदारी...पर..
एक बात अउर है भइया...!
जैसे जरूरी होत अहै,
दुश्मन से आपन दमखम
होय हमेशा भारी....
वइसै भले न होय दीवार कोई,
न होय कोई चहारदीवारी...पर...
एक बात सही हौ भइया...!
विकास बरे...जरूरी बाहै...
धाकड़ होय परस्पर पट्टीदारी....!
विकास बरे...जरूरी बाहै...
धाकड़ होय परस्पर पट्टीदारी....!
* रचनाकार...
जितेन्द्र कुमार दुबे
(अपर पुलिस अधीक्षक)
जनपद...कासगंज