बाल कथा : अनमोल  (लेखिका-कविता सिंह)

बाल कथा : अनमोल      (लेखिका-कविता सिंह)
लेखिका : कविता सिंह

बाल कथा : अनमोल 

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  एक शहर में हीरों के बहुत बड़े व्यापारी रहते थे । उनके दो बेटे थे। दोनों ही अपने पिता की तरह काफी समझदार थे।
एक दिन की बात है व्यापारी ने अपनी तिजोरी से एक पत्थर का टुकड़ा निकाला और अपने बेटे को देते हुए कहा कि "बेटा तुम इसको लेकर बाजार ले जाओ और देखो की इसका कौन कितनी कीमत लगाता है ? "

  व्यापारी का बेटा वह पत्थर लेकर बाजार चला गया। उसने देखा कि एक सब्जी वाला अपना ठेला लगा कर  सब्जी बेचने खड़ा था। उससे उस लड़के ने कहा "भैया मेरे पास ये पत्थर है मुझे मेरे पिताजी ने दिया है तुम इसके बदले में मुझे क्या दे सकते हो ?"

सब्जी वाले ने पत्थर हाथ में लेकर उसे उलट पुलटकर देखते हुए कहा " भाई इसके बदले तुम्हें बस एक किलो आलू भर दे सकता हूं ,मंजूर हो तो पत्थर मुझे दे दो और आलू ले जाओ "
लड़के को सब्जीवाले की बात नहीं जंची उसने सब्जीवाले से पत्थर वापस ले लिया और फिर एक कपड़े की दुकान में घुस गया। वहां जाकर उसने दुकानदार से कहा " भैया तुम इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकते हो ?
दुकानदार ने कहा "एक रुमाल बस "
 यह सुनकर उस लड़के को गुस्सा आ गया और वहां से निकलकर वह एक सुनार के दुकान पर जा पहुंचा । उसने सुनार से पूछा " भैया आप इस पत्थर के बदले मुझे क्या दे सकते हो ?"
सुनार ने कहा " मैं इसके एक लाख रुपए तक दे सकता हूं बस ।"

फिर वो लड़का एक बहुत बड़े ज्वेलरी के शो रूम में पहुंच गया वहां जाकर उसने वही सवाल दोहराया कि " इसके बदले में मुझे क्या दे सकते हो"
ज्वेलरी शो रूम वाले ने उससे कहा " ये अमूल्य है , तुम्हें पता है कि तुम हीरा हाथ में लेकर घूम रहे हो....?"

 यह सुनने के बाद वो लड़का वापस घर गया तो उसके पिता ने कहा कि" मैं तुम्हे एहसास करवाना चाहता था की जिसकी जितनी क्षमता है वो अपने हिसाब से ही तुम्हारी "अहमियत" को समझ पाएगा, इसलिए हर किसी से अच्छाई की उम्मीद मत करना। "

 * लेखिका : कविता सिंह
   ( गौतम बुद्ध नगर, नोएडा )