एक गज़ल : हसरत
एक गज़ल : हसरत
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हर मुलाकात पर ना गिला कीजिए,
जब भी मिलना हो हंस के मिला कीजिए ।
रहते हर दम हो क्यों मुरझाए हुए,
पुष्प के जैसे तुम भी खिला कीजिए।
जख्म नासूर बन के सताते बहुत,
ज़ख्म अपने न रह रह छिला कीजिए।
हो भरोसा न 'रजनी' जमाने पे गर,
इनको अपने ही हाथों सिला कीजिए।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
( जयपुर , राजस्थान )