*** डमरू छंद ***

*** डमरू छंद ***

      *** डमरू छंद ***

(होली पर कान्हा साधू का भेष बनाकर कमंडल में रंग भरकर ब्रज में घर-घर राधा को ढूंढ़ रहे हैं)

घट भर-भरकर चलत शरम तज,
कदम धरत अस पहत न पग रज।

रज पर सकल जगत तज तप बल,
लहत न कमल नयन रज भज-भज।

भजन करत टहरत घर-घर नट,
लखत, बचत,हरसत मन-मन अज।

अजब-गजब नटखट तव करतब,
भगवन लखत भगत पथ सज धज।

* रचनाकार : सुरेश मिश्र ( कवि एवं मंच संचालक ) मुम्बई