ग़ज़ल : हार ...
ग़ज़ल : हार ...
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हार मेरी कभी नहीं होती।
चाल तूने चली नहीं होती।
साज़िशों ने तुझे जिताया है,
वरना मेरी बली नहीं होती।
तेरी आँखों ने किया सम्मोहन,
जान के मैं छली नहीं होती।
करती न गर भरोसा मैं तुझ पर ,
चिता मेरी जली नहीं होती।
आती न गर मुझे बू साजिश की,
बात तेरी खली नहीं होती।
इश्क होता अगर रूहानी तो,
इससे महरूम गली नहीं होती।
खुदा गर मेहरबान न होता,
बला अब तक टली नहीं होती।
आइना हंसता है देख सूरत को,
चूर होती गली नहीं होती।
याद रहती नहीं तालीम अगर,
आज इतनी भली नहीं होती।
'रजनी' रूह के बिना ही जिंदा है,
रूह होती ढली नहीं होती।
* कवयित्री : रजनी श्री बेदी
(जयपुर -राजस्थान )